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Showing posts from February, 2023

faiz ahamad faiz ki shayri in hindi

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"ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले   शैख़-साहब से जाँ तो छुटेगी"     "मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे   दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए"     "अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले   तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है"       "अदा-ए-हुस्न की मासूमियत को कम कर दे   गुनाहगार-ए-नज़र को हिजाब आता है"    "ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू   सुलूक जिस से किया हम ने आशिक़ाना किया"      "तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी   तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे"       "हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन   अब शहर में तेरे कोई हम सा भी कहाँ है"      "फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं   फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम"    "हर सदा पर लगे हैं कान यहाँ   दिल सँभाले रहो ज़बाँ की तरह"     "शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की   शुक्र है ज़िंदगी तबाह न की"     "मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने   किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें"     "तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज

javed akhtar shayari in hindi

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"कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है   मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी"  जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता   मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता"  "मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है   किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता"  "तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे   अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है"  "डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से   लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा"  "इन चराग़ों में तेल ही कम था   क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे"  "धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है    न पूरे शहर पर छाए तो कहना"  "इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान   अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान"      "हम तो बचपन में भी अकेले थे   सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे"  "मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा   वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा"  "इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं   होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं"  "ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए

मिर्ज़ा ग़ालिब के मशहूर शेर

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मिर्ज़ा ग़ालिब के मशहूर शेर पढ़ने के लिए आप एक सही वेबसाइट पर आये हैं।  सहरसा शायरी लाया है आपके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब के बेस्ट पोएट्री का संग्रह।                                                                                                                    “ हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता ” “ था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ उड़ने से पेश्तर भी मेरा रंग ज़र्द था ”   “ ज़िन्दगी अपनी जब शक़ल से गुज़री ग़ालिब हम भी क्या याद करेंगे के खुदा रखते थे ” “ पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है ” “ चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है ” “ क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन ”   “ मै से ग़रज़ नशात है किस रूसियाह को इक गुनाह बेखुदी मुझे दिन रात चाहिए ”   “ ये मसैल-ए-तसव्वुफ़ ये तेरा बयान ग़ालिब तुझे हम वली समझते जो ना बड़ा खवर होता ”   “ होगा कोई ऐसा भी के ग़ालिब को ना जाने शायर तो वो अच्छा