javed akhtar shayari in hindi

"कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है 

 मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी" 










जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता 

 मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता" 










"मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है 

 किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता" 










"तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे 

 अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है" 










"डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से 

 लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा" 










"इन चराग़ों में तेल ही कम था 

 क्यूँ गिला फिर हमें हवा से रहे" 










"धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है 

  न पूरे शहर पर छाए तो कहना" 


"इसी जगह इसी दिन तो हुआ था ये एलान 

 अँधेरे हार गए ज़िंदाबाद हिन्दोस्तान" 

   

"हम तो बचपन में भी अकेले थे 

 सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे" 


"मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा 

 वो मुझ से जीत भी सकता था जाने क्यूँ हारा" 


"इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं 

 होंटों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं" 


"ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे 

 बहुत से ज़र्द चेहरों पर ग़ुबार-ए-ग़म है कम बे-शक पर उन को मुस्कुराने में अभी कुछ दिन लगेंगे" 


"याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा 

 कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा" 


"तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद 

 निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो" 


"मुझे मायूस भी करती नहीं है 

 यही आदत तिरी अच्छी नहीं है" 


"यही हालात इब्तिदा से रहे 

 लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे" 


"मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था 

 मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी" 


"सब का ख़ुशी से फ़ासला एक क़दम है 

 हर घर में बस एक ही कमरा कम है" 


"बहाना ढूँडते रहते हैं कोई रोने का 

 हमें ये शौक़ है क्या आस्तीं भिगोने का"

 

"अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफ़ी 

 हुनर भी चाहिए अल्फ़ाज़ में पिरोने का" 


"अक़्ल ये कहती है दुनिया मिलती है बाज़ार में 

  दिल मगर ये कहता है कुछ और बेहतर देखिए" 


"ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की 

 जब होता है कोई हमदम होता है" 


"उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है 

 मैं भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ"


"नेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते हो 

 हम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोग"


"इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में 

 ढूँढता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा" 


"इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में 

 शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है" 


"कभी हम को यक़ीं था ज़ोम था दुनिया हमारी जो मुख़ालिफ़ हो तो हो जाए मगर तुम मेहरबाँ हो 

 हमें ये बात वैसे याद तो अब क्या है लेकिन हाँ इसे यकसर भुलाने में अभी कुछ दिन लगेंगे" 


"ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे 

 ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का"


"खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा 

 ख़ुलूस तो है मगर ए'तिबार जाता रहा" 


"उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी 

 सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं" 


"आगही से मिली है तन्हाई 

 आ मिरी जान मुझ को धोका दे" 


"हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में 

 कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे" 


"छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर 

 मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं" 


"मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है 

 मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ" 


"दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग 

 जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग" 


"फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है 

 फिर ख़यालात ने ली अंगड़ाई" 


"एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया 

 एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं" 


"मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन 

 मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है" 


"उस के बंदों को देख कर कहिए 

 हम को उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे" 


"थीं सजी हसरतें दुकानों पर 

 ज़िंदगी के अजीब मेले थे" 


"ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के 

 वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है" 


"है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है 

 वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का" 


"पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत 

  पैरों की बे-ताबियाँ पानी के अंदर देखिए" 


"कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए 

 क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए" 


"हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी 

 क़दम रक्खा कि मंज़िल रास्ता थी " 

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