गुलज़ार साहब के 20 Best शायरी
गुलज़ार साहब के 20 Best शायरी
|| वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी, नफरत भी तुम्हारी थी
“हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते”
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी ||
|| बेशूमार मोहब्बत होगी, उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से
यूँ ही नहीं कोई, मोहब्बत मे इतना गिर जाता है ||
|| आप के बाद
हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है ||
|| तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन ||
|| दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई ||
|| तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ||
|| आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई ||
|| तन्हाई अच्छी लगती है
सवाल तो बहुत करती पर
जवाब के लिए
ज़िद नहीं करती ||
|| तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें, भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें, जो तुम को रुलाएँ भेजी हैं ||
|| खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते
बहुत चाहने वाले थे किस किस से
वफ़ा करते ||
|| हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं
तोड़ा करते ||
|| मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को, खुद से पहले सुला देता हूँ
मगर रोज़ सुबह ये, मुझसे पहले जाग जाती है ||
||आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई ||
|| वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है ||
|| मोहब्बत आपनी जगह
नफरत अपनी जगह
मुझे दोनो है तुमसे ||
|| ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है ||
||मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो,
नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा
कोई जवाब नहीं||
|| काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी
था तन्हाई भी ||
||तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए,
ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे
जाती है ||
||खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते है||
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